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💥राजस्थान इतिहास notes(PDF) 💥

 राजस्थान इतिहास notes(PDF) 

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Topic content 

  1. राजस्थान का एकीकरण 
  2. राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं 
  3. राजस्थान में 1857 की क्रांति राजस्थान में किसान आंदोलन राजस्थान में प्रजामंडल
  4. राजस्थान के प्रमुख महल हवेलियां छतरियां मकबरे 
  5. राजस्थान में जनजातीय आंदोलन राजस्थान में चित्रकला


भारतीय स्वंत्रता अधिनियम 1947 की धारा 8 के अनुसार भारत की आजादी के साथ ही समस्त देशी रियासतों पर में ब्रिटिश सरकार की सर्वोच्चता समाप्त हो गयी तथा यह सर्वोच्चता पुनः देशी रियासतों को हस्तांतरित कर दी गयी। अब देशी रियासतों को अपनी इच्छानुसार भारत अथवा पाकिस्तान में से किसी भी देश में सम्मिलित होने अथवा पृथक अस्तित्व बनाये रखने की स्वतंत्रता दे दी गयी। राजपूताना की समस्त रियासतों में हिंदू बहुल जनसंख्या थी। इनमें से केवल पालनपुर तथा टोंक ऐसी रियासतें थी जिनमें मुस्लिम शासक थे। शेष सभी रियासतों में हिंदू राजाओं का शासन था।

 इन रियासतों की भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि ये भारत अथवा पाकिस्तान दोनों में से किसी एक देश का चयन कर सकती किंतु जातीय आधार पर ये रियासतें और उनकी जनता ब्रिटिश भारत हिन्दू बहुल क्षेत्र से जुड़ी हुई थी। यह संबंध इतना मजबूत था कि यदि हिंदू बहुल देशी रियासतों में से कुछ रियासतों के शासक मुस्लिम लीग के साथ मिलकर पाकिस्तान में जाने का प्रयास करते तो पर्याप्त संभव था कि इन रियासतों की जनता राजाओं को उखाड़ फेंकती। कानूनन देशी राज्यों का संबंध शेष भारत से केवल वायसराय के माध्यम से था जो ब्रिटिश भारत पर गवर्नर जनरल की हैसियत से शासन चलाता किंतु 1858 ई. के पश्चात् से रेलवे, मुद्रा, डाक, तार तथा सड़क यातायात आदि माध्यमों से देशी रजवाड़े ब्रिटिश भारत के साथ अत्यधिक मजबूती से बंधते चले गये थे।

अंग्रेजों के जाने के बाद राजाओं की इच्छा ही रियासत का कानून होने वाली थी। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक था कि राजा लोग हिंदुस्तान या पाकिस्तान में न मिलकर स्वतंत्र रहने की चेष्टा करते और ऐसा न कर पाने की स्थिति में वे अपने अधिकारों को अधिक से अधिक सुरक्षित करने का प्रयास करते। इस प्रकार भारत के विभाजन के पश्चात् देश में गयी पांच सौ बासठ (562) छोटी-बड़ी रियासतों के शासकों की महत्त्वकांक्षायें देश की अखण्डता के लिये खतरा बन यो देशी राजा नरेन्द्र मण्डल के रूप में संगठित थे। 'भारत संघ' की ओर से लार्ड माउण्टबेटन, जवाहलाल नेहरू, सरदार पटेल तथा वी.पी. मेनन आदि अनेक व्यक्तियों ने देशी रियासतों के शासकों के साथ मुद्दों को तय करने तथा समस्याओं को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। माउंटबेटन का विचार था कि यदि देशी राजाओं से उनकी पदवियां न होनी जायें, महल ज्यों के त्यों उन्हीं के पास बने रहें, अगर उन्हें गिरफ्तारी से मुक्त रखा जाये, प्रिवीपर्स की सुविधा जारी हे और अंग्रेजों द्वारा दिये गये किसी भी सम्मान को स्वीकारने से अगर उन्हें न रोका जाये तो वे अपने राज्यों को भारतीय संघ में विलीन कर देंगे।

देशी रियासतों की आपसी गठन की कार्यवाही


भोपाल नवाब की पाकिस्तान समर्थित कार्यवाही : नरेन्द्र मण्डल के तत्कालीन अध्यक्ष भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां ने राजपूताने की रियासतों को पाकिस्तान में मिलने के लिये प्रेरित किया ताकि उन रियासतों की सीमा चाकस्तान से मिल जाये और इस प्रकार से भोपाल राज्य की सीमा पाकिस्तान से जा लगे। उसी की तरह इंदौर के महाराजा यशवंतराव होल्कर को भी कांग्रेसी नेताओं पर कोई भरोसा नहीं था। राजपूताने के बीकानेर तथा उदयपुर देशी राज्यों ने आरंभ से ही भारत संघ में मिलने का निर्णय लिया तथा भोपाल नवाब के प्रयासों को नकार दिया।


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