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राजस्थान के रसायनिक खनिज भाग-3

 रासायनिक खनिज (Chemical Mineral) 




बेराइट्स (Barytes)

बैराइट बेरियम सल्फेट (BaSO) है। यह अधात्विक खनिज या रासायनिक खनिज वजन में भारी होता है तथा इसका रंग हरे एवं लाल रंग का होता है। उपयोग इसका उपयोग खनिज तेल के कुएं खोदने, रंग रोगन, कागज तथा ब्लीचिंग पाउडर बनाने, दवाईयाँ बनाने, पटाखे तथा दवायुक्त" क्रोम बनाने के काम आता है। इसका उपयोग पेट्रोलियम खोज के लिए किए जाने वाले छिद्रण कार्यों में छिद्रण मड के रूप में किया जाता है। एक्स-किरण प्रयोगशालाओं में विकिरण से बचने के लिए कमरों में किए जाने वाले प्लास्टर में इसका उपयोग किया जाता है। उत्पादन क्षेत्र इसका सबसे अधिक उत्पादन अलवर जिले में होता है। बैराइटस का राज्य में लगभग 2.99 मिलियन टन भण्डार है। राजस्थान में उत्पादित कुल बेराइट्स का 80 प्रतिशत उत्पादन उदयपुर जिले में जगत, रेलपातलिया, केवड़ा और बावरमाल क्षेत्र में मिलता है। बेराइट्स के खनन का यह क्षेत्र राजस्थान बेराइट्स लिमिटेड द्वारा धारित है। उदयपुर जिले के अतिरिक्त राज्य में बेराइट्स के जमाव अलवर जिले में राजगढ़ क्षेत्र और सीकर जिले में नरोड़ा, खरबीनापुर क्षेत्र में मिलते हैं। इनके अलावा देलवाड़ा केसुली नाथद्वारा (राजसमंद) और भीलवाड़ा में भी पाया जाता है। 

नमक (Salt )

नमक उत्पादन में राजस्थान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान में आन्तरिक जल प्रवाह की झीलों यथा - सांभर झील, डीडवाना, लूणकरणसर, पंचभद्रा, बाप, फलौदी आदि में प्राकृतिक वाष्पीकरण की विधि से नमक उत्पादन किया जाता है जो सोडियम क्लोराइड या खाने के नमक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह देश का 8.7% नमक उत्पादन करती है। सांभर झील ही सर्वाधिक आन्तरिक स्रोत का नमक उत्पादन करती है जिसमें तीन प्रकार का नमक बनता हैं। (i) क्यार नमक (ii) रेस्टा नमक, (ii) पान साल्ट सांभर झील में यह नमक 20 से 30 मीटर की गहराई में आधारभूत माइकाशिस्ट में उपलब्ध सोडियम क्लोराइड के 'केशाकर्षण विधि' से सतह पर पहुँचने एवं वर्षा काल में नदियों से झील में प्राप्त पानी में घुलकर वाष्पीकरण से पुनः झील के पैदे पर क्रिस्टल कणों के रूप जमने से नमक बनता है जो नमक का प्रधान स्रोत है। राजस्थान में देश का लगभग 12% नमक उत्पादन होता है।


 डोलोमाइट

डोलोमाइट कैल्शियम एवं मैग्नीशियम का कार्बोनेट है। यह अवसादी एवं कायान्तरित चट्टानों के रूप में मिलता है। डोलोमाइट इस्पात एवं फेरो-मैगनीज उद्योगों में फ्लक्स के रूप में उच्च ताप खनिज के रूप में तथा मिनरल वुल (wool) बनाने के काम में आता है। राज्य में डोलोमाइट का अनुमानित भंडार 460.17 मिलियन टन है। राज्य में डोलोमाइट का मुख्य जमावक्षेत्र बजला-काबरा (अजमेर) मंडल, खोसीथल, मानवा रामगढ़, भैंसलाना (जयपुर) चाचा, ओडानिया (जैसलमेर), इंदो की ढाणी, इंदोलाई का तालाब, राठौड़ों का धोरा (जोधपुर), कालोरा (उदयपुर), सीमल, हल्दीघाटी, कारोली-कोसाली (राजसमंद) है।

फ्लोराइट उत्तम राजस्थान में देश का 96% फ्लोराइट का उत्पादन होता है। फ्लोराइट कॅल्शियम युक्त खनिज है। राजस्थान में उपयोग इसका प्रयोग शीतकों तथा कीटनाशी वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है। वर्तमान में इसका उपयोग इस्पात किस्म का एवं अधिक मात्रा में उत्पन्न किया जाता है। इस फेल्सपार भी कहते हैं। एल्यूमिनियम और फरो-एलोय उद्योगों में विशद रूप में किया जाता है। उत्पादक क्षेत्र राजस्थान में इसका उत्पादन सर्वप्रथम 1956 में इंगरपुर जिले में किया गया। सर्वाधिक उत्पादन योग्य क्षेत्र इंगरपुर जिले में 'माण्डव की पाल' और 'काहिला क्षेत्र में पाया जाता है। डूंगरपुर जिले का माण्डो की पालवाला फ्लोराइट उत्पादन की दृष्टि से सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप में प्रसिद्धी पा चुका है। कुछ फ्लोराइट जालोर जिले में, करड़ा व भीनमाल


दफ़्लोराइट (Fluourite)


सीकर में चौकड़ों व छापोतो भी उत्पन्न होता है। राज्य में केलसाइट का भण्डार लगभग 12.02 मिलियन टन है। केल्साइट (CaF2) पारदर्शक, सफेद बर्फीला रंग का या पीलापन


केल्साइट (Calcite)


लिए हुए होता है। उपयोग : इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर बनाने, सूक्ष्मदर्शक यंत्रों के त्रि-पावों के निर्माण, काँच, कैल्शियम कार्बाइड,

विस्फोटक पदार्थ, कार्बन डाई ऑक्साइड, वस्त्रों के रंग आदि बनाने के लिए किया जाता है।


उत्पादक क्षेत्र : इसका उत्पादन सीकर जिले के मोण्डा, उदयपुर, झुन्झुनूं जिले के पायरता, सिरोही जिले के राजपुरा, खेला बलकापहाड़, जयपुर जिले में ताम्रकोल, पाली जिले में सिरयावरों आदि स्थानों से होता है।


सिलिका सैण्डी


यह क्वार्टूनाइट, बालूकाश्म और फेल्सपारमीय चट्टानों के अपघटन से बनती है। इसका उपयोग ताप प्रतिरोधी पदार्थ के रूप में कांच, सिरेमिक, रासायनिक उर्वरक और इलेक्ट्रोड उद्योग में होता है। राजस्थान में सिलिका सेण्ड की प्राप्ति मनोता, जमवारामगढ़, सामोद, कलोटा (जयपुर जिला) फूलसागर, बड़ोदिया और टिकरा (बूंदी जिला) एवं टोडाभीम, नारायणपुरा, सेलमपुरा (करौली जिला) से होती है।


पायरोफाइलाइट


•पायरोफाइलाइट हाइड्रेट ऐलुमिनियम सिलिकेट है। इसका उपयोग जैवनाशी रसायनों निर्माण में रिफ्रेक्टरी एवं सिरेमिक उद्योग में होता है। राजस्थान में इसके जमाव अरावली एवं मंगलवाड़ कॅम्पलेक्स की संधि स्थलों पर मिले हैं। इसका खनन देबारी, गुड़ली, बड़ी मदार, रामा (उदयपुर) तथा बेगाड़िया-नाथूवास (राजसमंद) क्षेत्रों में होता है।

 फुलर्स अर्थ

इसे बोलचाल की भाषा में मुल्तानी मिट्टी तथा उद्योग जगत में ब्लिचिंग क्ले के नाम से जाना जाता है। यह न फूलने वालों कैल्शियम बेण्टोनाइट है। इसे तेल, ग्रीस, पेट्रोलियम शोधन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। राजस्थान में इसके जमाव कपूरड़ी, आलमसरिया, भाड़का (बाड़मेर) खिमस, मन्या (जैसलमेर) और पलाना, बरसिंघसर, जोगीड़ा (बीकानेर) में मिलते हैं। मुलतानी मिट्टी भारत में सर्वाधिक बाड़मेर जिले में मिलती है।


सिलिसियस अर्थ


सिलिसियस अर्थ कोलाइडल सिलिका एवं अन्य सिलिका पदार्थों से बनती है। इसे डाइएटोमाइट के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग फिलर एवं फिल्टर के रूप में सिरेमिक, वनस्पति यो उद्योग में तथा दवाइयां बनाने में होता है। राजस्थान में इसके विशेष बाड़मेर जिले में भोरासर, परियारा, माटी का गोल तथा जाटों को दाणों में मिलते हैं। 

वरमीक्यूलाइट अजमेर, बांसवाड़ा, गुडास आदि क्षेत्रों में उत्पादित होता है।


वोलस्टोनाइट सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर आदि क्षेत्रों में उत्पादित होता है।


 क्ले (Clay)

राज्य में बाल क्ले, 432.51 मिलियन टन है।

फायर क्ले और चाईना क्ले का अनुमानित भण्डार क्रमशः 31.8 मिलियन टन 66.42 मिलियन टन तथा बाल क्ले: बौकानेर, पाली, जैसलमेर, नागौर, बाड़मेर आदि क्षेत्रों में उत्पादित होता है। चायना क्ले: बौकानेर, भीलवाड़ा, चित्तौडगढ़, जयपुर सवाईमाधोपुर, सौकर, उदयपुर, जोधपुर आदि क्षेत्रों में उत्पादित होता है।

फायर क्ले बीकानेर में उत्पादित होता है।

हल्के नीले रंग का यह मूल्यवान पत्थर बहुत सुन्दर होता है। यह नौलम के सब्सटीट्यूट के रूप में भी प्रयुक्त होता है। राजस्थान में यह टॉक में सर्वाधिक मिलता है। इसके अला यह भीलवाड़ा व अजमेर में भी मिलता है।

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