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💥 राजस्थान में खनिज संसाधन (धात्विक) Part 1 Rajasthan gk

               राजस्थान में खनिज संसाधन

राजस्थान में खनिज संसाधन freestudymaterial247

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राजस्थान के एकाधिकार वाले खनिज 

खान एवं भूविज्ञान विभाग, राजस्थान वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन जनवरी, 2017 के अनुसार राजस्थान में लगभग 81 प्रकार के खनिजों की प्राप्ति होती है तथा इनमें से 57 खनिजों का उत्पादन होता है। इन खनिजों में लेड-जिंक, वोलेस्टोनाईट, केल्साइट, सेलेनाईट व जैस्मार का शतप्रतिशत, सिल्वर, जिप्सम, रॉक फास्फेट एवं ऑकर का 90 प्रतिशत से अधिक उत्पादन राज्य में होता है। जिनमें राजस्थान लंड-जिंक, बोलेस्टोनाइट व सेलेनाइट का एकमात्र उत्पादक राज्य है। देश में चांदी केल्साइट और जिप्सम का लगभग उत्पादन राजस्थान में होता है। प्रधान खनिजों में कुछ विशिष्ट खनिज जैसे जस्ता, वोलेस्टोनाईट, जेस्पर, गारनेट (जेम) राजस्थान पाये जाते हैं जबकि अप्रधान खनिजों में संगमरमर एवं ग्रेनाईट की सर्वाधिक किस्में राजस्थान में ही उपलब्ध हैं। अप्रधान खनिजों में राज्य का देश में प्रथम स्थान है। इसी कड़ी में अब तेल एवं प्राकृतिक गैस भी जुड़ गये हैं, जिनकी उपलब्धता बहुराष्ट्रीय कम्पनी – केयर्न एनर्जी द्वारा बाड़मेर जिले के मंगला, विजया, बायतु आदि क्षेत्रों में सिद्ध की गई है, जिससे राज्य ऑयल उत्पादित करने पूरा में ही के उत्पादन वाले प्रदेशों में शामिल हो गया है। इनके अलावा कई खनिजों जैसे केल्साईट, सोपस्टोन, सीसा, रॉक फॉस्फेट, जिप्सम, मार्बल, सेण्डस्टोन, बालक्ले, ऑकर्स, सिल्वर, फेल्सपार आदि के उत्पादन में राजस्थान अग्रणी है। अलौह धातु (सीसा, जस्ता, तांबा) के
उत्पादन मूल्य की दृष्टि से भारत में राजस्थान का पहला स्थान है।
राज्य में स्थापित 23 सीमेंट प्लान्ट कार्यरत है जिनसे 55.22 मिलियन टन सीमेंट का उत्पादन होकर राज्य का सोमेंट उत्पादन देश में अग्रणी है। राज्य में खनिजों के प्रबंधन एवं खोज हेतु खान एवं भू-विज्ञान
विभाग राज्य सरकार का प्रशासनिक विभाग है, जिसका मुख्यालय उदयपुर में है। देश में सर्वाधिक खानें राजस्थान में हैं। देश के कुल खनिज उत्पादन में राजस्थान का लगभग 22 प्रतिशत योगदान है। इसके साथ ही देश के कुल खनिजों में 15% धात्विक, 25% अधात्विक एवं 30% लघु श्रेणी के खनिजों में भी राज्य का योगदान है।
खनिज भंडारण की दृष्टि से से राजस्थान का देश में झारखण्ड के बाद दूसरा स्थान है। खनन क्षेत्र में होने वाली आय की दृष्टि
खनिज भण्डारों की दृष्टि (खनिज उत्पादन मूल्य की दृष्टि से) से राजस्थान का देश में पाँचव स्थान है। राज्य के GDP में खनन का योगदान लगभग 5 प्रतिशत है। 2014-15 के अनुसार देश के कुल खनिज उत्पादन में राजस्थान का हिस्सा 9% है। राजस्व के अर्जन में विभाग का प्रदेश में पांचवां स्थान है। विभाग का जो आय लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं, उसकी तुलना में पिछले पांच वर्षों (2008-09 से 2012-13) में लगातार निर्धारित लक्ष्य से अधिक आय लक्ष्य अर्जित किये जा रहे हैं। खनन गतिविधियों की वृद्धि से राज्य में रोजगार के अवसरों में भी महती वृद्धि हुई है। गत वर्ष 2016-17) विभाग के राजस्व का लक्ष्य रु. 4200.00 (संशोधित) करोड़ रखा गया था, जिसके विरूद्ध रु. (4233.74 करोड़ का राजस्व अर्जन किया गया था। चालू वित्तीय वर्ष में रु. 5200 करोड़ का राजस्व लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसके विरूद्ध, 2017 तक रु. 3098.31 करोड़ का राजस्व अर्जित किया जा चुका है तथा पूर्ण प्रयास किये जा रहे है कि इस वर्ष राजस्व लक्ष्य अर्जित किया जा सके। खनन गतिविधियों की वृद्धि से राज्य में रोजगार के अवसरों में भी महती वृद्धि हुई है। केवल प्रत्यक्ष रूप से ही 5-6 लाख व्यक्ति तथा अप्रत्यक्ष रूप से 20 लाख व्यक्ति इस उद्योग में कार्यरत हैं।
राज्य के खनिजों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है


1.धात्विक खनिज

2. अधात्विक खनिज

3. ऊर्जा उत्पादक खनिज


1. धात्विक खनिज



लौह अयस्क (Iron-ore) लौह का अयस्क चार प्रकार -मेग्नेटाइट, हेमेटाइट, लीमोनाइट साइडेराइट का होता है। राजस्थान में अधिकांश लौहा हेमेटाइट प्रकार का 65% तक लौहांश वाली अयस्क से प्राप्त होता है। कुछ स्थानों पर सर्वोच्च गुणवत्ता वाला मेग्नेटाइट प्रकार का लौड़ा भी प्राप्त होता है। राज्य में लगभग 557.39 मिलियन टन लौह अयस्क (हेमाटाइट व मेग्नेटाइट दोनों) का जमाव है। सन् 1960 में 1.2 लाख मीट्रिक टन लौहे का सर्वाधिक उत्पादन हुआ। राजस्थान के प्रमुख लौह अयस्क क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में पाये जाते हैं, वे निम्न हैं


जयपुर - मोरीजा, बानोला क्षेत्र


दौसा - नीमला राइसेला, लालसोट क्षेत्र 

झुंझुनूं - डाबला सिंघाना

सीकर - नीमकाथाना, रामपुरा डाबला

 उदयपुर - नाथरा की पाल, थूर हूण्डेर क्षेत्र 

भीलवाड़ा पुराबनेड़ा, बागौर

बूंदी- इंद्रगढ़, मोहनपुरा, 

करौली- देदरौली, लीलोती, तोडुपुरा, खोरा 

नाथरा की पाल में 80 लाख टन लौह अयस्क होने का अनुमान है जिसमें से 20 लाख टन लौह अयस्क उत्तम श्रेणी का मेग्नेटाइट प्रकार का लोहा कूंता गया है। मेग्नेटाइट को "काला लोहा" भी कहा जाता है। तांबे के उत्पादन में राजस्थान राज्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राज्य में तांबे के 777.17 मिलियन टन (49.86%) से भी अधिक भण्डारों का अनुमान है। राज्य में देश का लगभग 32% तांबा उत्पादन होता है। तांबे का शोधन खेतड़ी में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के एक कारखाने से होता है जहाँ प्रतिवर्ष 31 हजार टन तांबा शोधन किया जाता है। इसकी क्षमता को तांबा अयस्क उत्पादन की गति को देखकर 45 हजार टन बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इसका प्रयोग विद्युत उपकरण एवं तार बनाने में किया जाता है। ताबाँ उत्पादन की दृष्टि से राज्य का देश में दूसरा स्थान है।


उत्पादक क्षेत्र:

(i) खेतड़ी-सिंघाना क्षेत्र : यह क्षेत्र राज्य का प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र है जहाँ 9 करोड़ टन तांबा अयस्क के भण्डार अनुमानित किये गये हैं। यह क्षेत्र राजस्थान के सीकर-झुन्झुनूं जिलों में खेतड़ी शहर से सिंघाना एवं रघुनाथ गाँव तक लगभग 80) किमी. की लम्बाई में फैला हुआ है। जिसमें कोल्हन एक प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र है। (ii) नीमकाथाना तांबा पट्टी (iii) खोह-दरीबा क्षेत्र (अलवर) (iv) पुर-बनेड़ा-दरीबा क्षेत्र (भीलवाड़ा) (v) अन्य क्षेत्र - उदयपुर जिले में देबारी (सीसे की खाने), अंजनी एवं सलूम्बर तथा चूरू जिले में बीदासर क्षेत्र भी एक तांबा उत्पादक क्षेत्र है। सीकर जिले में 'बन्नो वालों की ढाणी' जो पाटन तथा 'मीरां का नांगल' क्षेत्र में स्थित है, उसमें 18.19 किमी. लम्बा ब्लॉक स्थित है। यहाँ ताँबें के अकूत भण्डार मिले हैं। इसके अलावा भगोनी के उत्तर में 5.22 मिलियन टन ताँबें के भण्डारों का पता चला है।

सीसा और जस्ता सांद्र (Lead and Zinc ore )


राजस्थान में भारत का 80% सीसा एवं 90% जस्ता (कन्सन्ट्रेट) का उत्पादन होता है। सीसा 'गेलेना' नामक अयस्क से मिश्रित रूप में देश में मात्र राजस्थान में ही पाया जाता है। हमारे देश को सीसे व जस्ते का शत-प्रतिशत उत्पादन यहाँ से प्राप्त होता है। सीसा जस्ता सांद्र में मिश्रित रूप में प्रति टन 25.3 आँस एवं 5.6 औंस चाँदी भी मिलती है। उप-उत्पाद के रूप में केडमियम भी होता है।


शीशा और जस्ता के उत्पादक क्षेत्र


(i) जावर क्षेत्र (उदयपुर): जावर का क्षेत्र (जावर खदान) सीसा जस्ता उत्पादन के लिए देश में बहुत प्रसिद्ध है। जावर की खानें अब बहुत गहरी (150 मीटर तक) हो गई है। अतः धातु निकालना कठिन होता जा रहा है। वर्तमान में मोचिया मगरा पहाड़ी से अधिकतम सीसा जस्ता निकाला जाता है। इस शीशे एवं जस्ते के शोधन के लिए भारत सरकार के उपक्रम के रूप में उदयपुर में देबारी गाँव के पास सीसा-जस्ता शोधन संयंत्र लगाया गया है। जिसमें प्रतिवर्ष लगभग 36 हजार टन जस्ते का शोधन होता है।


हिन्दुस्तान जिंक का यह कारखाना अब विनिवेश की प्रक्रिया में आ गया है। (ii) राजपुर-दरीबा बेधुमी क्षेत्र (राजसंमद) : यहाँ लगभग 2 करोड़ टन सीसे-जस्ते के भण्डारों का अनुमान है। यहाँ के मिश्रित सांद्र में जस्ता सीसा साथ-साथ ताबा भी प्राप्त होता है।


(ii) रामपुरा आगचा, पुरा बनेडा व गुलाबपुरा क्षेत्र भीलवाड़ा जिले के रामपुरा आगूचा एवं गुलाबपुरा क्षेत्र में जस्ते के अपार भण्डारों का हाल ही में पुख्ता प्रमाण मिल हैं। इन भण्डारों के आधार पर ही चित्तौड़गढ़ में चन्देरिया तथा भीलवाड़ा जिले में जस्ता संयंत्र भारत सरकार ने स्थापित किया है। सीसा गलाने का संयंत्र राज्य में नहीं है।


(iv) अन्य क्षेत्र: दक्षिणी पूर्वी भाग में दूंगरपुर जिले में घुंघराव मांडों, बाँसवाड़ा जिले में वरहालिया तथा सिरोही जिले में देहरी, जोपार और तुरगी, क्यार गुढ़ा, सावर (अजमेर) स्थानों में भी सौसे-जस्ते के जमाव है।


(v) चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र सवाईमाधोपुर, (vi) अलवर जिले के गुढ़ा किशोरीदास क्षेत्र।


टंगस्टन (Tungeston)


ग्रन्यू में टंगस्टन वुल्फ्रेमाइट (Wolframite) तथा Scheelite अयस्क से प्राप्त होता है। इसके अन्य अयस्क हुबनेराइट, शीलाइट और फर्बराइट हैं। राज्य में टंगस्टन का जमाव लगभग 23.92 मिलियन टन है जो देश का लगभग 17% है। राजस्थान में देश के सर्वाधिक सीसा-जस्ता, चांदी का जमाव है जो 607.53 मिलियन टन है। टंगस्टन धातु उच्च ताप पर भी नहीं पिघलती है। इसका गलनांक बिन्दु 1350 सेन्टीग्रेड होता है। यह सामरिक महत्व का खनिज है। इसका उपयोग बिजली के बल्चों, इस्पात को कड़ा करने, चीजों को काटने व सुरक्षा सामग्री के निर्माण में किया जाता है।


टंगस्टन के उत्पादक क्षेत्र: टंगस्टन उत्पादन में भारत में राजस्थान राज्य का एकाधिकार है। यहाँ पर नागौर जिले के डेगाना भाकरी (रावल पहाड़ी क्षेत्र में एक छोटी-सी पहाड़ी पर से टंगस्टन का उत्पादन किया जाता है। सिरोही (बाल्दा/वाल्टा-बडाबेरा) के पास भी टॅगस्टन के जमाव मिले हैं।"


अन्य उत्पादक क्षेत्र पाली, नाना कराब, सिरोही आबू रेवदर उत्पादन राजस्थान राज्य की इन खानों से देश का 75 प्रतिशत से भी अधिक टंगस्टन का उत्पादन होता है। वर्तमान में राज्य


में इसका विशेष खनन नहीं हो रहा है।


बेरेलियम (Barylium)


बेरिलियम विरल नामक खनिज से प्राप्त होने वाला षट्कोणीय आकृति वाला एल्युमिनियम का सिलीकेट है। राजस्थान में उत्तम कोटि का 11% से 14% शुद्धता का बेरिलियम मिलता है।उपयोग इसका उपयोग अणु शक्ति एवं विद्युत उद्योगों में होता है।


बेरिलियम के उत्पादक क्षेत्र प्रमुख उत्पादक जिले जयपुर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, सीकर, टॉक और अलवर हैं। अजमेर जिले में बान्दर सौंदरी था जयपुर में गुजरवाड़ा एवं उदयपुर में बड़ी शिकारबाड़ी मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।


मँगनीज (Mangenese)


इसे सभी व्यवसायों का आधार (Jack of all Trades) कहा जाता है।

मैग्नीज के उत्पादन क्षेत्र: राजस्थान में मुख्यतः मैंगनीज का जमाव बांसवाड़ा में है जो गुरासिया से राथीमुरी क्षेत्र में है। बाँसवाड़ा जिले बैंगनीज का उत्पादन लालवानी, नरडिया, तिम्मामोरी, सिवोनिया, कालाखुटा, घाटिया, कांसला, सागवा, इटाला, खेडिया, कांचला, ड़िया, सोणा लकाई, गोंदूक-बारीखूटा तथा तलवाड़ा आदि स्थानों से राजस्थान का सर्वाधिक मँगनीज निकाला जाता है। इसके अलावा कुछ मैंगनोज नगेडिया (राजसमंद) तथा छोटी-सार, बड़ी-सार (उदयपुर) में भी पाया जाता है। जमाव राज्य में लगभग 5.8 मिलियन टन मँगनीज के जमाव का अनुमान है। राजस्थान मैंगनीज का उत्पादन बहुत कम होता है।


चाँदी (Silver)


इसका उत्पादन सीसा एवं जस्ता के साथ मिश्रित धातु के रूप में होता है। चांदी के उत्पादक क्षेत्र उदयपुर के पास की सीसा-जस्ता की जावर खदाने, जावरमाला की पहाड़ियों आदि हैं जहाँ हिन्दुस्तान जस्ता शोधन संयंत्र में सीसा जस्ता एवं तौबा के मिश्रण से चाँदी को निकाला जाता है। प्रति टन सीसा एवं जस्ता सांद्र से 25.3 औंस एवं 5.6 औंस चाँदी निकाली जाती है।

राजस्थान में चाँदी का देश के 80.8% सुरक्षित भण्डार है।


सोना (Gold)

ऑस्टेलियाई कम्पनी 'इन्डो गोल्ड' ने बाँसवाड़ा जिले के जगतपुरा भूकिया, आनन्दपुर भुकिया क्षेत्र में 105.81 मिलियन स्वर्ग भण्डार की खोज की है। राजस्थान में सोना के उत्पादन क्षेत्र आनन्दपुर भुकिया, जगतपुरा घुकिया, तिमारन माता (बाँसवाड़ा), रामपुर व खेड़ा (उदयपुर) में सर्वे किया गया है। इसके अलावा धानी बसेंडी (दौसा), खेड़ा-मुण्डीवास (अलवर) और दोकन (सीकर) में भी अनुमादित है।



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