3. पूर्वी मैदान (The Eastern Plains) )
यह मैदानी भाग अरावली पर्वत माला के पूर्व में स्थित है। राजस्थान प्रदेश का पूर्वी हिस्सा एक समतल मैदान के रूप में विस्तृत है। यह मैदान पश्चिम से पूर्व की 50 से.मी. की समवर्षा रेखा द्वारा विभाजित है। इसके अन्तर्गत अलवर, भरतपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, जयपुर, दौसा, टॉक एवं भीलवाड़ा तथा दक्षिण की ओर से डूंगरपुर, बाँसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिलों के मैदान भाग सम्मिलित हैं। यह मैदान नदी बेसिन प्रदेश है जो गंगा व यमुना नदियों द्वारा निर्मित मैदान है। मैदान की दक्षिण-पूर्वी सीमा विन्धयन पठार द्वारा बनाई जाती है। इस मैदान के अन्तर्गत चम्बल बेसिन की निम्न भूमियाँ जैसे बनास का मैदान और मध्य घाटी अथवा छप्पन का मैदान आदि सम्मिलित हैं। बनास का मैदान यद्यपि एक कांपीय भू-भाग है फिर भी एक समप्राय मैदान है। यह प्रदेश 'गंगा-यमुना नदी बेसिन' प्रदेश है अर्थात् नदियों द्वारा जमा की गई मिट्टी से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है। इस मैदानी प्रदेश के
तीन उप-प्रदेश हैं (अ) बनास बाणगंगा बेसिन, (ब) चम्बल बेसिन और (स) मध्य माही बेसिन अथवा छप्पन का मैदान।
(अ) बनास-बाणगंगा बेसिन (Banas and Banganga Basin) : बनास नदी को 'वन की आशा' कहते हैं। बनास बेसिन की सीमा पश्चिम में 50 से.मी. की वर्षा रेखा द्वारा निर्धारित है। यहां पहाड़ियों के अनाच्छादन (अपरदन व अपक्षय) का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इनके उच्च भू-भाग टीलेनुमा हैं जिसके कारण इसे 'पीड़मान्ट मैदान' भी कहा जा सकता है।
मालपुरा करौली का मैदान यह मैदान कटा फटा बीहड़युक्त बनास बेसिन का उत्तर-पूर्वी भाग कहलाता है। इसकी औसत ऊँचाई 280 से 400 मीटर है। इस मैदान का ढाल दक्षिण-पूर्व और पूर्व की ओर है। यह शिष्ट व नीस चट्टानों से निर्मित है यहाँ पर कांपीय जमाव नीस चट्टानों को छुपाये हुए काफी मोटाई में व्याप्त है।
बनास बाणगंगा बेसिन यह मैदान बाणगंगा और बनास इसको सहायक बेडच, कोठारी, डेन, सोहाद्रा, मानसी, धुन्ध, बांडी, मोरेल, वागन, गम्भरी आदि नदियों द्वारा निर्मित है। यह एक विस्तृत मैदान है, जिसकी समुद्रतल से ऊँचाई 150 से 300 मीटर के मध्य है तथा ढाल पूर्व की ओर है। बनास बेसिन समतल मैदानी भाग है। इसके सीमावर्ती क्षेत्र में पहाड़ियाँ हैं। करौली क्षेत्र में पहाड़ियाँ ऊँची तथा सघन है तथा कटा फटा प्रदेश है किन्तु, जलोढ़ मृदा के जमाव के कारण कृषि के लिए उपर्युक्त है। जलवायु की दृष्टि से यह प्रदेश उष्ण आर्द्र है। यहाँ का वार्षिक वर्षा का औसत 65 सेमी. हैं जो प्रतिवर्ष परिवर्तित होता रहता है। यहां सम्पूर्ण वर्षा का 90 प्रतिशत जुलाई से सितम्बर के मध्य होता है।
(ब) चम्बल बेसिन (Chambal Basin) चम्बल बेसिन को जन्म देने वाली चम्बल नदी मध्यप्रदेश के मऊ के दक्षिण में मानपुर के समीप जानापाव पहाड़ी (616 मी. ऊँची) के विंध्यन कगारों के उत्तरी पार्श्व से निकलती है तथा चौरासीगढ़ (चित्तौडगढ़) के समीप एक गार्ज को पार कर राजस्थान में प्रवेश करती है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से लेकर यमुना में मिलने तक अनेक प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण करती है जिनमें प्रमुखतः गार्ज, नदी कगार, जलप्रपात (चूलिया), शिप्रकाएँ एवं नीकपाइन्ट्स तथा बीहड़ भूमि आदि प्रमुख हैं। चम्बल बेसिन उत्खात स्थलाकृति (Badland topography) हेतु सम्पूर्ण भारत में जाना जाता है। इस बेसिन का कुल क्षेत्र लगभग 4500 वर्ग कि.मी. है जो बोहड़ों (Ravines) से प्रभावित है। प्रदेश में कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, करौली, भरतपुर, सवाई माधोपुर और धौलपुर जिलों का क्षेत्र सम्मिलित है। कोटा का क्षेत्र हाड़ौती में सम्मिलित है किन्तु यहाँ चम्बल का मैदानी क्षेत्र स्थित है। इस प्रदेश में सवाई माधोपुर, करौली एवं धौलपुर में चम्बल के बीहड़ स्थित है। यह अत्यधिक कटा फटा क्षेत्र है, इनके मध्य समतल क्षेत्र स्थित है। धौलपुर एवं सवाई माधोपुर के चम्बल नदी के सहारे का क्षेत्र अत्यधिक कटाव से 'बीहड़' के रूप में हैं। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण चम्बल बोहड़ पट्टी है जो 480 कि.मी. की लम्बाई में कोटा से बारां तक विस्तृत है। इसके दक्षिण भाग में अनियमित पहाड़ियाँ हैं जिन्हें 'डॉग' (Dang) कहते हैं। धौलपुर नगर के द.प. में पहाड़ियाँ विस्तृतहैं। भरतपुर के पूर्व में भी मण्डहोली नाम की पहाड़ी है, इसकी अधिकतम ऊँचाई 216 मीटर है।
(स) मध्य माही बेसिन अथवा छप्पन मैदान (Chappan Basin) : इसका विस्तार उदयपुर के दक्षिण-पूर्व से, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिलों में है। यह क्षेत्र माही नदी की सहायक नदियों के द्वारा सिंचित क्षेत्र है, माही नदी की सहायक नदियों का ढाल प्रवणांक अति तीव्र है। इतना अधिक डाल प्रवणांक प्रदेश में अन्य इष्टिगोचर नहीं होता है। यहाँ का ढाल प्रवणांक 8 से 12 मीटर प्रति कि.मी. है। अन्ततोगत्वा यह नदी कच्छ की खाड़ी से होते हुए अरब सागर में मिलती है। यह क्षेत्र अधिक गहराई तक विच्छेदित होने के कारण इस विच्छेदित मैदान को तथा पहाड़ी भू-भाग को स्थानीय भाषा में 'बागड़' नाम से पुकारा जाता है। बागड़ में बाँसवाड़ा व दूँगरपुर के पहाड़ी भू-भागों तथा विच्छेदित मैदान को सम्मिलित किया जाता है। दूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा उदयपुर के मध्य का माही मैदान घाटियों का क्षेत्र विशेषकर प्रतापगढ़ व बाँसवाड़ा के बीच के भाग में छप्पन ग्राम समूह स्थित थे, इसलिए यह भू-भाग 'छप्पन का मैदान' के नाम से भी जाना जाता है।
4. दक्षिण-पूर्वी हाड़ौती पठार (The South-Eastern Plateau)
यह प्रदेश 23°51' से 25°/20° उत्तरी अक्षांश एवं 75°15' से 7725' पूर्वी देशान्तर के मध्य कोटा, बारा, बूँदी एवं झालावाड़ जिलों में विस्तृत है। यह प्रदेश मालवा के पठार का उत्तरी भाग है जिसे 'हाड़ौती का पठार' भी कहते हैं। इस प्रदेश का क्षेत्रीय विस्तार 24,185 वर्ग कि.मी. है तथा इसको पूर्वी, दक्षिणी एवं दक्षिणी-पश्चिमी सीमायें मध्य प्रदेश से मिलती है। इस क्षेत्र की औस ऊँचाई 500 मीटर है। यहाँ चम्बल नदी और इसकी प्रमुख सहायक कालीसिंध, परवन और पार्वती नदियाँ प्रवाहित है, उनके द्वारा निर्मित मैदानी प्रदेश कृषि के लिये उपयुक्त है।
यह पठार चम्बल नदी के सहारे पूर्वी भाग में विस्तृत है। यहाँ अनेक छोटी पर्वत श्रेणियाँ हैं, जिनमें मुकन्दरा की पहाड़ियाँ और बूँदों की पहाड़ियों प्रमुख हैं। यह मेवाड़ मैदान के दक्षिण-पूर्व में व उत्तर पश्चिम में अरावली के महान् सीमा भ्रंश द्वारा सीमांकित है और राजस्थान की सीमा के पार तब तक फैला हुआ है जब तक बुन्देलखण्ड के पूर्ण विकसित कगार दिखाई नहीं देते। हाड़ोती पठार के अन्तर्गत ऊपरमाल का पठार और मेवाड़ का पठार आता है। जिसमें राजनीतिक दृष्टि से झालावाड़ से बूंदी, कोटा, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा और बांसवाड़ा के कुछ भाग सम्मिलित हैं। यह पठारीय भाग आगे चलकर मालवा के पठार में मिल जाता है। इसका ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। यह पठार निम्न दो इकाइयों में विभाजित किया जाता है
(अ) विन्धयन कगार भूमि: यह कगार भूमि क्षेत्र बड़े-बड़े बलुआ पत्थरों से निर्मित है, जो स्लेटी पत्थरों के द्वारा पृथक् दिखाई देतो है। करायरों का मुख बनास और चम्बल के बीच दक्षिण, दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर है तथा बुन्देलखण्ड में पूर्व की तरफ फैले हुए हैं।
(ब) दिक्कन का लावा पठार : मध्यप्रदेश के विन्धयन पठार का पश्चिमी भाग तीन संकेन्द्रीय कगारों के रूप में विस्तृत है। यह तीन सकेंन्द्रीय कगार तीन प्रमुख बलुवा पत्थरों की परिव्यक्त शिलाओं के बीच-बीच में स्लेटी पत्थर भी मिलते हैं। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की यह भौतिक इकाई 'ऊपरमाल' के नाम से जानी जाती है। यह एक विस्तृत एवं पथरौली भूमि है जिसमें कोटा-बूंदी पठारी भाग भी सम्मिलित है। विन्धयन कगारों के आधार तल क्षेत्रों तक दक्कन ट्रेप लावा के जमाव दिखलाई देते हैं। बूंदी व 'मुकन्दवाड़ा की पहाड़ियाँ' इसी पठारीय भाग में हैं। इस क्षेत्र में गन्ना, चावल, कपास, अफीम, जौ, गेहूँ, चना आदि की खेती भी कापीय एवं काली मिट्टी के क्षेत्रों में की जाती है।
एक अन्य मत के अनुसार हाड़ौती पठार को पाँच धरातलीय प्रदेशों में विभक्त किया जाता है, ये हैं: (i) अर्द्ध-चन्द्राकार पर्वत श्रेणियाँ, (ii) नदी निर्मित मैदान, (iii) शाहबाद का उच्च स्थल, (iv) झालावाड़ का पठार और (v) डग-गंगधार उच्च क्षेत्र इस प्रदेश में अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में पर्वत श्रेणियों का विस्तार है जो क्रमशः बूंदी और मुकुन्दवाड़ा की पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है। इस श्रेणी में 4 दरें हैं बूंदी के निकट का दर्रा, जैतावास के निकट, रामगढ़-खटगढ़ के मध्य तथा चौथा लाखेरी के निकट। इन श्रेणियों की औसत ऊंचाई 300-350 मी. तथा इनका सर्वोच्च शिखर सतूर (353 मी.) है। मुकन्दरा की पर्वत श्रेणी हाड़ौती के मध्य उत्तर-पश्चिम से दक्षिण की और विस्तारित है। इस श्रेणी का सर्वोच्च शिखर चंदवाड़ी क्षेत्र में 517 मीटर ऊँचा है। हाड़ौती पठार पर चम्बल व उसकी सहायक नदियों जैसी कालीसिंध, मेज, पार्वती आदि नदियों द्वारा नदी निर्मित मैदान उपजाऊ मैदान है। शाहबाद का उच्च क्षेत्र बारां जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। इस क्षेत्र में विशिष्ट भू-आकृति रामगढ़ कस्बे के निकट घोड़े की नाल की आकृति (Horse-Shoe Type) पर्वत श्रेणी है जिसके मध्य एक छोटी झील है। दक्षिणी हाड़ौती क्षेत्र झालावाड़ का पठार है जो मालवा पठार का उत्तरी भाग है। यहां काली मिट्टी का विस्तार है। इसके दक्षिण-पश्चिम भाग में डग-गंगधार की उच्च भूमि है। भूगर्भिक बनावट कोटा-बारां जिलों का अधिकांश भाग विन्धयन क्रम का है।
जलवायु को दृष्टि से यह प्रदेश उप-उष्ण जलवायु वाला है। यहाँ का वार्षिक वर्षा का औसत 95 से.मी. है। इसमें झालावाड एवं बंदी का उत्तरी-पश्चिमी भाग अधिक वर्षा प्राप्त करता है। जबकि मध्य क्षेत्र में 60 से 80 से.मी. तक वर्षा होती है। अधिकांश वया जून से सितम्बर माह के मध्य होती है। शीतकाल में कुछ वर्षा होती है जिसे 'मावट' कहते हैं जो गेहूँ आदि फसलों के लिये अत्यधिक लाभकारी होती है। संक्षेप में, राजस्थान राज्य का भौतिक स्वरूप प्राचीनतम चट्टानों से युक्त, नवीनतम कछारी, बालू, जिप्सम एवं चूना प्रधान मृदा से परिपूर्ण, विविध खनिज युक्त स्थली तथा सम्पूर्ण राष्ट्र की जल-विभाजक रेखा की धरा धोरां री धरती' सांस्कृतिक परम्पराओं से परिपूर्ण तथा भौतिक विविधता एवं विरासत तथा सभ्यताओं का पालना रही है।
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