2. अरावली पर्वतीय क्षेत्र (The Aravali hill region) )
उत्पत्ति एवं विस्तार (Origin & Extension) :
अरावली पर्वतमाला विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वतमालाओं में से एक है। इसकी आयु 650 मिलियन वर्ष के लगभग है। इसका उद्भव एवं उत्पत्ति भूगर्भिक इतिहास के प्राचीन कल्प अर्थात् प्री-कैम्ब्रियन कल्प में हुआ। आज यह अवशिष्ट पर्वतमाला (Residual mountains) के रूप में उपलब्ध है। इसकी तुलना अमेरिका के अप्लाशियन पर्वतों से की जा सकती है। यह गौडवाना लैण्ड का अवशेष है। अरावली पर्वतीय प्रदेश राजस्थान में 23°20° उत्तरी अक्षांश से 28°201 उत्तरी अक्षांश तथा 72°10' पूर्वी देशान्तर से 77° पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है।
यह पर्वतमाला दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर गुजरात के खेडब्रह्मा (पालनपुर) से आरम्भ होकर राजस्थान के मध्यवर्ती जिलों से होती हुई हरियाणा के कुछ भागों सहित दिल्ली तक विस्तृत है जो रायसीना पहाड़ी तक जाती है, जहाँ राष्ट्रपति भवन बना हुआ है। यह पर्वतमाला राज्य के मध्य में विकर्ण के रूप में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर फैली हुई है। इसकी कुल सम्बाई 692 कि.मी. है, जिसमें से 550 कि.मी. (80 प्रतिशत खेडब्रह्मा से खेतड़ी तक) राजस्थान में विस्तृत है। इसका दक्षिण-पश्चिम भाग ऊँचा एवं चौड़ा है जो उत्तर-पूर्व की ओर कम होता जाता है तथा खेतड़ी (झुंझुनू) से दिल्ली तक छोटी-छोटी श्रृंखलाओं में फैली हुई है। इस श्रेणी का स्वरूप अजमेर से सिरोही एवं गुजरात तक एक तानपुरे की तरह है जो ऊपर से संकरी तथा नीचे से फैली हुई है। इसकी औसत ऊँचाई 930 मीटर है तथा गुरुशिखर (माउण्ट आबू) इसकी सबसे ऊंची चोटी है जिसकी ऊँचाई 1722 मीटर है। इसमें राज्य की कुल 10% जनसंख्या निवास करती है जिसमें जनजातियों का बाहुल्य है। इसके अन्तर्गत राजस्थान के सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपुर, दौसा, अलवर जिले मुख्यतया सम्मिलित है। किन्तु इनकी शाखाओं एवं प्रभाव को दृष्टिगत रखते हुए इसमें दूँगरपुर, बाँसवाड़ा, चितौडगढ़ तथा भीलवाड़ा जिले भी सम्मिलित कर लिए जाते हैं। सोकर और झुंझुनूं जिले की कुछ तहसीलें भी इसमें सम्मिलित की जाती हैं। यह सम्पूर्ण प्रदेश मात्र एक भौगोलिक प्रदेश ही नहीं अपितु एक 'योजना प्रदेश' है।
अरावली की स्थलाकृति
(Topography of Aravali)
भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से अरावली श्रेणियों प्री-केम्ब्रियन शैलों से सम्बन्धित हैं जिन्हें देहली क्रम और अरावली क्रम के अन्तर्गत वर्णित किया जाता है। अरावली पर्वतमाला को ऊंचाई के आधार पर 3 उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है
(अ) उत्तर-पूर्वी अरावली प्रदेश (ब) मध्यवर्ती अरावली प्रदेश (स) दक्षिणी अरावली प्रदेश
(अ) उत्तर पूर्वी अरावली प्रदेश (North Eastern Aravali Region) :
यह क्षेत्र 26°55' से 28°4' उत्तरी अक्षांश एवं 74°55' से 77°03' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इसके अन्तर्गत अलवर, जयपुर, दौसा, सीकर, झुंझुनूं और नागौर जिलों का पूर्वी भाग सम्मिलित है। उत्तरी अरावली क्षेत्र का विस्तार सांभर झील से उत्तर-पूर्व में राजस्थान हरियाणा सीमा तक है। उत्तरी अरावली प्रदेश जयपुर (सांभर) जिले के उत्तर-पूर्व तक की समस्त पर्वत श्रेणियों को सम्मिलित किया जाता है। इनमें शेखावाटी की पहाड़ियाँ, तोरावाटी की पहाड़ियों तथा जयपुर और अलवर की पहाड़ियों सम्मलित हैं।
इस क्षेत्र की समस्त श्रेणियाँ अपरदित है। इस भाग में अरावली श्रेणियाँ क्वार्टजाइट एवं फाईलाइट शैलों से बनी हैं। इस प्रदेश को औसत ऊँचाई 450 मीटर है। यहाँ पहाड़ियों के बीच-बीच में उपजाऊ घाटियां और कॉपीय बेसिन हैं। इस प्रदेश के प्रमुख उच्च शिखर सीकर जिले में रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) है। अन्य प्रमुख उच्च शिखर निम्म हैं -
- रघुनामगढ़ (सीकर)-1055 मो.
- खो(जयपुर) 920 मी.
- भैराच (अलवर) 792 मी.
- बरवाड़ा (जयपुर) 786 मी
- बनाई (झुंझुनू) 780 मी.
- बिलाली(अलवर) 775मी.
- मनोहरपुरा (जयपुर) 747 मी.
- बैराठ (जयपुर) 704 मी.
- सरिस्का (अलवर) 677 मी.
- सिरावास 551 मी.
- भानगढ़, (अलवर) 649 मी.
- जयगढ़ (जयपुर) 648
- नाहरगढ़ 599
- अलवर जिला (बालागढ़) 597 मी.
यहां की बाणगंगा, धुन्ध और बौड़ी नदियों प्रमुख हैं जो बनास नदी की सहायक हैं।
(ब) मध्य अरावली प्रदेश (Central Aravali Region) : यह क्षेत्र 25°38 उत्तरी अक्षांश से 26°58' उत्तरी अक्षांश तथा 73°54' से 74°22' पूर्वी देशान्तर के मध्य विस्तृत है। इसका विस्तार जयपुर के दक्षिणी पश्चिमी भाग से दक्षिण में राजसमन्द जिले की देवगढ़ तहसील तक है। इस प्रदेश के उच्च प्रदेश पश्चिम में बिखरे कटकों के साथ सांभर बेसिन द्वारा पूर्व में करौली उच्च भूमि के द्वारा, उत्तर में अलवर पहाड़ियों के द्वारा तथा दक्षिण में बनास मैदान द्वारा सोमाबद्ध है। इस क्षेत्र में पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 700 मीटर है किन्तु पाटियां 550 मीटर ऊंची है। ये श्रेणियाँ लगभग 30 किमी. चौड़ो और 100 किमी. तक विस्तृत है। यह मुख्यतः अजमेर जिले में फैला है। अजमेर के दक्षिण-पश्चिम भाग में तारागढ़ (870 मीटर) और पश्चिम में सर्पिलाकार पर्वत श्रेणियाँ नाग पहाड़ (795 मीटर) कहलाती है। अजमेर और नसीराबाद के मध्य की श्रेणियों जल विभाजक का कार्य करती है।
मेरवाड़ा पहाड़ियों मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के उच्च पठार से अलग करने वाली पर्वत श्रेणी मेरवाड़ा पहाड़ियों कहलाती है जो अजमेर शहर के समीपवतो भागों में पहादियों के समानान्तर अनुक्रम में दृष्टिगोचर होती है। इसका उच्चतम शिखर अजमेर नगर के निकट समुद्रतल से 870 मीटर ऊँचा है जो तारागढ़ के नाम से जाना जाता है। इसके पश्चिम में नाग पहाड़ स्थित है जो उत्तरी मैदान में उच्चतम स्थल को परिलक्षित करता है। कुकरा से पहाड़ियों व भाटियों का एक अक्रमण अजमेर जिले के अन्तिम विस्तृत है जहाँ मेवाड़ पहाड़ियों में मिल जाते हैं। पश्चिमी पार्श्व पर पहाड़ियाँ बहुत ही प्रत तथा प्रपात बन जाती हैं। इस प्रदेश को औसत ऊंचाई 550 मीटर है।
शेखावाटी निम्न पहाड़ियाँ इस प्रदेश का भू-दृश्य बालू पहादियों और निम्न गत से परिलक्षित है। यह सांभर लेक से प्रारम्भ सबसे लम्बी श्रेणी जिले में सिंघाना तक जाती है।
मध्य अरावली को प्रमुख चोटियां गोरमजी (अजमेर) 934 मी, मारायजी (टोडगढ़ के निकट) 933 मी. तारागढ़ (अजमेर) 870
नाग (अजमेर) 795 मो आदि।
मध्य अरावली के प्रमुख दरें झीलवाडा, कछवाली, पोपलो, अरनीया। ब्यावर तहसील में अरावली श्रेणियों के पांच दरें स्थित है, जिनके नाम हैं बार, पखेरिया, शिवपुर घाट, देवारी तथा सुरा घाट है।
(म) दक्षिणी अरावली क्षेत्र (Southern Aravali Region): इस क्षेत्र का विस्तार 23°46 से 26°02' उत्तरी अक्षांश और 7216 पूर्वी देशान्तर से 74°35 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। यह भाग मुख्यतः उदयपुर, डूंगरपुर, राजसंमद व सिरोही जिलों में विस्तृत है। इस भाग में अरावली श्रेणियां अधिक विस्तृत ऊँची एवं एक हाथ के पंजे के समान फैली हुई है। इसको औसत ऊँचाई 900 मीटर है। इस प्रदेश को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(i) मेवाड़ चट्टानी पहाड़ी प्रदेश व भोराठ का पठार (Plateau of Bhoratha) यहीं से भारत की महान जल विभाजक रेखा (बृहत सीमांत अंश) उदयपुर से मुड़ने पर दक्षिण-पश्चिम की ओर चली जाती है। आबू के अतिरिक्त अरावली का उच्चतम भू-भाग उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में कंभलगढ़ और गोगूदा के बीच एक पठार के रूप में स्थित है जो स्थानीय भाषा में 'भोराठ का पठार' नाम से जाना जाता है। भोराठ का पठार का दक्षिणी स्कन्ध अरब सागर व बंगाल की खाड़ी के जल प्रवाह के बीच जल विभाजक का काम करता है। इस पठार की औसत ऊँचाई 1225 मीटर है, कुछ चोटियों की ऊँचाई 1300 मीटर तक है। पूर्वी सिरोही के पश्चिम में तो दाल वाली एवं ऊबड़-खाबड़ भाग को स्थानीय भाषा में 'भाकर' कहते हैं। जयसमंद झील के पूर्व में 'लसाड़िया' का कटा फटा व विच्छेदित पठार है। कुछ पहाड़ी स्कन्ध तश्तरीनुमा आकृतिवाले हैं जो उदयपुर बेसिन को घेरे हुए हैं जिसे स्थानीय भाषा में 'गिरवा' (पहाड़ियों की मेखला) कहते हैं।
(ii) आबू पर्वत खण्ड :आबू पर्वत खण्ड अरावली का श्रेष्ठतम राग है जो समुद्र तल से करीब 1200 मीटर से भी अधिक ऊँचा है। इसका सम्पूर्ण भाग ग्रेनाइट से निर्मित है। इसे एक वैथोलिय की संज्ञा दी जाती है। स्थलाकृति की दृष्टि से इसे इन्सेलवर्ग भी कहा जा सकता है। इससे सटा हुआ उड़िया पठार 1360 मीटर ऊँचा है जो राज्य का सबसे ऊंचा पठार है।
यह गुरुशिखर (1722 मी.) मुख्य चोटी के नीचे है। आबू पर्वतखण्ड की सबसे ऊंची चोटी माउण्ट आबू (सिरोही) में गुरुशिखर है जो कि 5,650 फीट या 1722 मीटर ऊँची है। गुरु शिखर हिमालय की माउण्ट एवरेस्ट (4,848 मी) व पश्चिमी घाट की नीलगिरि के मध्य सबसे ऊंची चोटी है।
आबू पर्वत के पश्चिम में आबू-सिरोही श्रेणियां हैं। आबू प्रदेश में सिवाना पर्वतीय क्षेत्र (बालोतरा के पास) में मुख्यतः गोलाकार, इन्छप्पन की पहाड़ियों' एवं 'नाकोड़ा पर्वत' के नाम से जाना जाता है। ये पहाड़ियां बहुत सुन्दर हैं। ये मेवानगर के जैन तीर्थ पार्श्वनाथ तथा अधिष्ठायक देव भैरव के कारण अधिक प्रसिद्ध है। इसी प्रकार उदयपुर का उत्तर पश्चिमी पर्वतीय भू-भाग 'मगरा' के नाम से जाना जाता है। बंदी को अरावलो श्रेणियों को 'आडावाला पर्वत' कहा जाता है। चित्तौड़गढ़ की पहाड़ी का पठारों भाग 'पैसा का पठार' (620 मी.) नाम से जाना जाता है जिस पर चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। मुकुन्दवाड़ा की पहाड़ियों कोटा झालरापाटन के बीच स्थित है जिसका डाल दक्षिण से उत्तर की ओर है, इसलिए चम्बल दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। दक्षिणी अरावली क्षेत्र वास्तव में मुख्य अरावली है। इस भाग में पर्वत श्रेणियों का विस्तार 100 किमी. चौड़ाई तक हो गया है।
तथा औसत ऊँचाई 1000 मीटर है। माउण्ट आबू के क्षेत्र में अरावली की श्रेणियाँ अत्यधिक सघन एवं उच्चता लिये हुए हैं। इस
प्रदेश में अरावली पर्वतमाता के अनेक उच्च शिखर स्थित हैं। जेम्स टॉड ने गुरुशिखर की एकान्तता को देखते हुए इसे सन्तों का शिखर' कहा है। इसे 'गुरुमाथा' भी कहा जाता है। गुरुशिखर हिमालय को माउण्ट एवरेस्ट व पश्चिमी घाट की नौलगिरि के मध्य
सबसे ऊँची चोटी है। आबू पर्वत पर पशिष्ठ आश्रम पाण्डव भवन, ज्ञान सरोवर, अर्बुदा देवी, टॉड रॉक ,प्वाइट, गौतम आश्रम, लक्की झील, जमदरिल आश्रम, टेवरटेक आदि दर्शनीय स्थल हैं।
दक्षिण अरावली की प्रमुख चोटियाँ
1.गुरुशिखर (सिरोही) - 1722मी
2.सेर (सिरोही) - 1597मी
3.देलवाड़ा (सिरोही) - 1442 मी.
4.जरगा (उदयपुर)- 1431 मी.
5. अचलगढ़ - 1380 मी.
प्रमुख दर्रे (नाल) : जीलवा की नाल (पगल्या नाल) - यह मारवाड़ से मेवाड़ में आने का रास्ता प्रदान करती है। सोमेश्वर की नाल - विकट तंग दर्रा हाथी गुढ़ा की नाल कुंभलगढ़ दुर्ग इसी के पास बना है। सरूपघाट, देसुरी की नाल (पाली), दिवेर एवं हल्दी घाटी दर्रा (राजसमंद) आदि प्रमुख है।
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