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Major physical divisions and geology of Rajasthan gk [English / Hindi medium]

 राजस्थान के मुख्य भूतत्व एवं भौतिक विभाग

Rajastan GK in english

Rajasthan gk pdf
Panorama Book


 राजस्थान के भू-आकृतिक स्वरूप बहुत प्राचीन हैं और लम्बे समय की अपरदन एवं निक्षेपण प्रक्रियाओं से बने हैं। राज्य के वर्तमान भू-आकृतिक स्वरूप शैल समूहों और संरचना से अधिक प्रभावित हैं। राज्य में विद्यमान अरावली पर्वतमाला प्राचीन गौंडवाना लैण्ड का ही एक भाग है जबकि पश्चिमी थार मरुस्थल और पूर्वी मैदानी प्रदेश टेथिस सागर के अंग माने जाते हैं। राज्य में विद्यमान उच्चावच (Relief) के चार संरचनात्मक स्वरूप हैं जिन्हें भू-आकृतिक प्रदेश के रूप में जाना जाता है, जो इस प्रकार हैं: 

1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश /थार का मरुस्थल (The western desert or Thar desert%)
2. अरावली पर्वतीय प्रदेश (The Aravali hill region)
3. पूर्वी मैदानी प्रदेश (The eastern plain region), तथा
 4. दक्षिण-पूर्वी पठार/ हाडौती पठार (The south-eastern plateau region)



1. पश्चिमी मरुस्थल प्रदेश (The western desert or Thar Desert)


इस प्रदेश का विस्तार राज्य में 23°30° उत्तरी से 30 12 उत्तरी अक्षांश और 69°30' पूर्वो से 78°17' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अरावली पर्वत श्रृंखला के पश्चिम में यह प्रदेश 300 मि.मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र पर फैला बालू का विशाल क्षेत्र है। इसके अन्तर्गत राज्य के बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़ जिले पूर्ण मरुस्थल तथा जालौर, पाली, नागौर, भूगर्भिक प्रमाण स्पष्ट दर्शाते हैं कि पर्मो कार्बोनिफरस काल में पश्चिमी राजस्थान पर विस्तृत समुद्र था। न्यूरेसिक क्रिटेशियस शुरु शंठन, सीकर जिले अर्द्ध मरुस्थलीय है। 

मरुस्थल का उद्भव (Origion of Desert) 

जिले और इयोसीन भूगर्भिक युगों में यह क्षेत्र समुद्र के नीचे था और धीरे-धीरे यहाँ से समुद्र खिसकने लगा, तत्पश्चात प्लॉस्टोसीन काल में यहाँ मनुष्यों का प्रादुर्भाव हुआ, जो क्रमशः विस्तृत होता गया और मानवीय क्रिया-कलापों (अतिचारण, निर्वनीकरण तथा मृदा व जल का अनुचित प्रबंधन ने इसे मरुस्थलीय क्षेत्र बनाने में महती भूमिका निभाई। फलस्वरूप ईसा पूर्व 4000 से 1000 वर्ष के मध्य इस क्षेत्र में पूर्ण मरुस्थलीय दशाओं का विकास हो गया। यहाँ विद्यमान खारे पानी की झोली को समुद्रों का अवशेष माना जाता है। सर सिरिल फॉक्स के अनुसार, मरुस्थल का दक्षिणी-पश्चिमी एवं सिंध का निचली घाटी वाला भाग अपर टर्शियरी युग तक समुद्र के नीचे रहा। यह तथ्य यहाँ पाये जाने वाली चट्टानों में प्राप्त समुद्री जीवाश्म से स्पष्ट होता है। बैलेण्डफोर्ड ने भी इसी प्रकार के विचार प्रस्तुत किये हैं। उनके अनुसार समुद्र के निरन्तर पीछे हटने के परिणामस्वरूप सिकुड़न किया से उचित समुद्र तल ने मरुस्थलीय क्षेत्र को जन्म दिया, जिसका प्रमाण इस क्षेत्र की लवणोप झीलें है तथा कच्छ का दलदली भाग भी उसी का अवशेष है। राजस्थान के 'चार मरुस्थल के सम्बन्ध में यह भी माना जाता है कि इसको वृद्धि के लिये मानवीय कारक भी उत्तरदायी है। इसमें प्रमुख है वनस्पति का काटना और अनियन्त्रित पशु चारण है। पशुचारण शुष्क प्रदेशों का प्रमुख उद्यम रहा है और आज भी यह मरुस्थलीयकरण का एक कारण है।


प्राकृतिक स्वरूप

(Natural Form)

इस मरुस्थल को रेतीला मरुस्थल एवं पथरीला मरुस्थल दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। रेतीले मरुस्थल का विस्तार सम्पूर्ण क्षेत्र के लगभग 85 प्रतिशत क्षेत्र पर है। इस प्रदेश की विशिष्ट भू-आकृति बालुका स्तूप (Sand-dunes) हैं जो विविध रूपों में विस्तृत है। इसके विपरीत पथरीला मरुस्थल जैसलमेर, बीकानेर के उत्तरी भाग तथा जोधपुर की फलौदो तहसील के कुछ भागों में स्थित है। यहां इयोसिन व प्लीस्टोसीन काल के प्रारम्भ तक समुद्र था जिसके अवशेष विभिन्न चट्टानी समूहों में पाये जाते हैं। यहाँ बलुआ और चुने के पत्थर के शैल हैं, जिनका उपयोग स्थानीय इमारती पत्थर के रूप में किया जाता है।

विस्तार एवं स्थिति (Extension & Location) यह विशाल मरुस्थल 'ग्रेट पेलियोआर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल का ही पूर्व वाला भाग है जो उत्तरी अफ्रीका से प्रारम्भ होकर फिलिस्तीन अरब एवं ईरान से होता हुआ भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात राज्यों में विस्तृत है। भारत में स्थित मरुस्थल का 62 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान में विद्यमान है। राजस्थान का अरावली श्रेणियों के पश्चिम का क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क मरुस्थलीय प्रदेश हैं! 

शुष्कता के आधार पर विभाजन
पश्चिमी रेतीले मैदान का विभाजन शुष्कता के आधार पर दो मुख्य उप-इकाईयों में किया जा सकता है 
1. रेतीला शुष्क मैदान :
 (अ) बालुकास्तूप युक्त मरुस्थली प्रदेश 
 (ब) बालुकास्तूप मुक्त प्रदेश


2. अर्द्धशुष्क मैदान या बांगर प्रदेश:
(अ) लूनी बेसिन /गोड़वार प्रदेश 
(ब) आन्तरिक जल प्रवाह या शेखावाटी प्रदेश
(स) नागौर उच्च भूमि
(द) घग्घर का मैदान

 रेतीले शुष्क मैदान और अर्द्ध शुष्क मैदान को विभाजित करने वाली वर्षा रेखा 25 से.मी. वर्षा रेखा है। 

1. रेतीला शुष्क मैदान (Sandy Arid Plain): यह अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा (रेडक्लिफ लाइन) से पूर्व में 25 से.मी. वर्षा रेखा तक विस्तृत है। इसका ढाल पश्चिम व दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिले एवं जोधपुर और चूरू
जिलों के पश्चिमी भाग सम्मलित है। इस प्रदेश में सर्वत्र बालुका स्तूपों का विस्तार है। कुछ क्षेत्रों जैसे पोकरण, जैसलमेर, रामगढ़ में संरचनागत होती है। पश्चिमी रेतीले मैदानी मरुस्थलों में बालुका स्तूपों का विस्तार तथा मात्रा निम्न तालिका से स्पष्ट है

(अ) बालुकास्तूप युक्त मरुस्थली प्रदेश (Sandy Dunes Aren) : 

राजस्थान मरुस्थल का सुदूर पश्चिमी भाग बालू के स्तूपों से ढका हुआ है। पश्चिमी रेतीले मैदान का 59 60% भाग बालुका स्तूपों से आच्छादित है। इन बालुका स्तूपों को स्थानीय भाषा में "धोरे" कहते हैं। ये बालुका स्तूप वायु अपरदन एवं निक्षेपण का प्रतिफल है, जो मार्च से जुलाई तक अत्यधिक मात्रा में रहता है। बायतू, चोहटन, शेरगढ़, शिव, रामगढ़, भालेरी, सूरतगढ़, लूणकरणसर, करणीमाता, सोहनगढ़ आदि स्थानों पर बालुका स्तूप पाये जाते हैं। यह क्षेत्र कच्छ से पंजाब तक सीमा के सहारे-सहारे (बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर) है इस

क्षेत्र को महान् भारतीय मरुस्थल (Great Indian desert) भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में मेकी (Mckee-1979) ने निम्न प्रकार के बालुका स्तूप बताये हैं 
i. पवनानुवर्ती या रेखीय बालुकास्तूप (Longitudinal or Linear Sand Dunes) :ये बालुकास्तूप (10 से 60 मी. ऊँचाई) लम्बवत् समानान्तर श्रेणियों के समान दिखाई देते हैं। जिनका विस्तार जैसलमेर के इ.प. रामगढ़, जोधपुर व बाड़मेर जिलों में वायु की दिशा के अनुरूप विस्तृत हैं।

ii. ई बरखान (बरच्छान) या अर्द्धचन्दाकार बालुका स्तूप (Barchans or Crescent Shaped Sand Danes): 10-20 मी. ऊंचाई एवं 100-200 मी. तक चौड़ाई तक फैले ये बालुकास्तूप गतिशील होते है। भालेरी (चुरू), जैसलमेर, सौकर, सूरतगढ़, लूणकरणसर, करणी माता, बाड़मेर, ओसियां व जोधपुर में मिलते हैं।

iii. अनुप्रस्थ बालुकास्तूप (Transverse Sand Dunes): ये वायु की दिशा में समकोण बनाते हैं। ये बीकानेर, हनुमानगढ़ के रावतसर, गंगानगर के सूरतगढ़, चूरू, झुंझुनू जिलों में मिलते हैं।

iv. तारा बालुकास्तूप (Star Sand Dunes) 
जैसलमेर के आस-पास हम्मादा स्थलाकृति में ऐसे स्तूप मिलते है। तारा बालुका स्तूप जैसेलमेर के मोहनगढ़, सूरतगढ़ में मिलते हैं।

v. पेराबोलिक बालुका स्तूप का विस्तार सम्पूर्ण मरुस्थलीय क्षेत्र में है। 
vi. नेटवर्क बालुका स्तूप मरुस्थल उत्तर-पूर्वी भाग में पाए जाते हैं।

vii. बरखोनोइड्स एवं बरखान प्रकार के बालुकास्तूप अण्डाकार रूप में मिलते हैं। ये मुख्यतः भालेरी, रतनगढ़, जोधपुर के पश्चिमी भाग, बीकानेर के देशनोक झुंझुन, एवं नागौर जिले के जायल, डीडवाना, कुचामन देशनोक में मिलते हैं।
 vill. अवरोधी बालुका स्तूप पुष्कर, बड़ा पुष्कर, नाग पहाड़, विचून पहाड़, जोबनेर एवं सीकर की पहाड़ियां आदि क्षेत्र में मिलते है।

ix. स्क्र-काफीज बालुका स्तूप छोटी-छोटी झाड़ियों एवं घास के झुण्ड के आस-पास ये पश्चिमी राजस्थान में मिलते हैं। 

(ब) बालुकास्तूप मुक्त प्रदेश (Sandy Dunes free Area ) : यह प्रदेश महान् मरुस्थल के पूर्व में जैसलमेर जिले में स्थित है।

पश्चिमी रेतीले मैदान का 40-41 प्रतिशत भाग पर स्थित है। यहाँ पर बालुकास्तूपों का पुतिः अभाव है। सारा क्षेत्र परतदार चट्टानों से ढका हुआ है जो टरसियरी काल से प्लीस्टोसीन काल की हैं। इनमें चूने की चट्टाने एवं शैल प्रमुख हैं। इन चट्टानों में कई प्रकार के जुरासिक काल के वनस्पति अवशेष एवं जीवावशेष पाये जाते हैं। जैसलमेर नगर के दक्षिण में स्थित 'आंकल वुड फोसिल पार्क' इसका विशिष्ट उदाहरण है। इस प्रदेश को बाड़मेर जैसलमेर का चट्टानी प्रदेश भी कहा जाता है। इस सम्पूर्ण प्रदेश में बालुका स्तूपों के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर जाने से अस्थायी झीलों का निर्माण होता है। इन्हें 'रन' (Rann) कहते हैं। बरमसर, कनोड़, भाकरी, लवा,, पोकरन (जैसलमेर), बाप (जोधपुर) और धोब (बाड़मेर) प्रमुख रन हैं। इस प्रदेश के अवसादी शैल समूह में भूमिगत जल का अच्छा भण्डार पाया जाता है। लाठी सीरीज' जिसका अनूठा उदाहरण है। इसी प्रकार इन टशरीकालीन अवसादी चट्टानों में तेल एवं गैस भंडार भी हैं।

 2. अर्द्धशुष्क मैदान या बांगर प्रदेश (Semi Arid plain or Bangar Area) :
अरावली पर्वत एवं पश्चिमी शुष्क प्रदेश के प्य यह क्षेत्र स्थित है। अरावली पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी भाग में लूनी नदी जल प्रवाह क्षेत्र में यह मैदान अवस्थित है। 25 से.मी. को सम-वर्षा रेखा रेतीलो मरुभूमि व अर्द्ध शुष्क मैदान को विभाजित करती है। यह प्रदेश आन्तरिक प्रवाह क्षेत्र में आता है। इसके उत्तर में परंपर नदी इसको उत्तरी सीमा बनाती है। यह सम्पूर्ण प्रदेश जलवायु की दृष्टि से शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क जलवायु के बीच का प्रदेश है जिसे संक्रमणीय अथवा परिवर्ती (Transitional) जलवायु को संज्ञा दी जा सकती है। बांगड़ को पुनः चार भागों में बिमका किया गया है - (अ) लूनी बेसिन, (ब) शेखावाटी प्रदेश. (स) नागौर उच्च भूमि, (द) घग्घर मैदान

(अ) गौड़वार प्रदेश या लूनी बेसिन (Godwar Region) : यह एक नदी निर्मित अर्द्ध-शुष्क मैदान है जिसे 'लूनी बेसिन' कहा जाता है। यह क्षेत्र पाली, जालौर, सिरोही, जोधपुर एवं नागौर के दक्षिणी भागों तक विस्तृत है। लूनी बेसिन में सबसे अधिक विस्तृत मैदानो भाग समतल प्राचीन कांपीय मैदान का है जो सम्पूर्ण असिन का 47.51% भाग को घेरता है। इस सम्पूर्ण शुष्क प्रदेश में सूनी अथवा उसको सहायक नदियाँ अपना अपवाह क्षेत्र बनाती है। लूनी पश्चिमी राजस्थान की प्रमुख नहीं है। लूनी नदी बेसिन को पूर्वी सीमा कोलाभरा इंगर (Kalabhara Dungar) है। लूनी मौसमी नदी है और उसकी सहायक नदियाँ जोजरी, बांडो, गुहिया, जलाई, खारी आदि है। सुनी तथा उसकी सहायक नदियों जोधपुर जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग, पाली, जालौर, सिरोही जिलों में रहती है। सनी नदी का पानी बालोतरा तक पहाड़ी अपवाह तंत्र के कारण मोठा एवं तत्पश्चात् नमक युक्त चट्टानों नमक के कणों एवं मरुस्थली प्रदेश के अपवाह तन्त्र के कारण खारा हो जाता है। वर्तमान स्थलाकृति की रचना में प्रारम्भिक जलक्षरण एवं वायु अपरदन का सम्मिलित कार्य रहा है। कच्छ के लेगिस्तान से हवाओं द्वारा यहाँ तक बालू बिना किसी अवरोध के लाई जाती है। यह बालू दक्षिणी-पश्चिमी झंझाओं के द्वारा लाई जाती है। इसीलिए नदियाँ अपना मार्ग बदल लेती है या इनका मार्ग हो जाता है। वर्तमान उच्चावच्च प्रारम्भिक जल अपरदन भू-पृष्ठीय अनाच्छादन का परिणाम है। जालौर में ग्रेनाइट से निर्मित पहाड़ियाँ तथा मलानो रायोलाइट को पहाड़ियां 'गुम्बदाकार या इन्सलवर्ग के रूप में पाई जाती है। जिनका फैलाव माडलिया, हेमावास, चोटीला, खेजरला, रावनिया तथा काकनी, मोगरा तक है। लूनी बेसिन की प्रमुख कृत्रिम झीलें अनन्तसागर, फतहसागर, जसवन्त सागर, सरदारसमन्द, हेमवास, नयागांव और सारदा आदि हैं।

(ब) आन्तरिक जल प्रवाह या शेखावाटी प्रदेश (Shekhawati Region) : इसे 'बांगर के प्रदेश' के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान को उत्तरी-पूर्वी सीमा तक सूनी नदी के बेसिन के उत्तर में शेखावाटी प्रदेश जिसके अन्तर्गत चूरू, झुंझुनूं व नागौर का उत्तरी भाग सम्मिलित है। इस प्रदेश की पूर्वी सीमा अरावली श्रेणी द्वारा अंकित है। उत्तरी सीमा घरघर मैदान व पश्चिमी सोमा 25 से.मी. का समवय रेखा द्वारा विभाजित है। यहाँ ज्यादातर बरखान (अर्द्ध वृत्ताकार) प्रकार के स्तूप पाये जाते हैं। बलुई मिट्टी, कम वर्षा, स्तूपों की दीवार आदि के कारण यह सम्पूर्ण प्रदेश आन्तरिक जलप्रवाह का क्षेत्र है। सांभर झील आन्तरिक जल प्रवाह क्षेत्र में है जिसमें मैदा, रूपनगर व खारी आदि नदियाँ मिलती है। कांतली नदी भी अरावली से निकलकर उत्तर-पश्चिम में बहते हुए राजगढ़ के निकट रेट में विलीन हो जाती है। इस क्षेत्र में कच्चे व पक्के कुओं का निर्माण जल प्राप्ति हेतु किया जाता है जिसे 'जोहड़' या 'नाड़ा' के नाम से जाना जाता है। यहाँ केवल वर्षा ऋतु में बहने वाली नदी कान्तला है। इस क्षेत्र में चूरू एवं बीकानेर ऐसे जिले हैं जिनमें कोई नदी नहीं है। अन्तर चालुकास्तूपों में वर्षों का पानी कम हो जाता है जिसे 'सर' या 'सरोवर' कहते हैं। जसूसर, सालिसर, मानसर आदि इसके उदाहरण है। सांभर झोल आन्तरिक जल प्रवाह का उत्तम उदाहरण है। इस प्रदेश में अनेक नमकीन पानी के गर्व (रन) हैं जिनमें डेगाना, सुजानगढ़ तालछापर, परिहारा, कुचामन आदि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

(स) नागौर उच्च भूमि (Nagaur Uplanad) : लूनी बेसिन के उत्तर में समुद्र तल से 300 से 500 मीटर ऊँचाई वालों नागौर उच्च भूमि स्थित है। इसको उत्तरी सीमा शेखावाटी का अन्तरवाही मैदान बनाता है। यह प्रदेश बंजर और रेतीला है क्योंकि यहां की मिट्टी में सोडियम नमक पाया जाता है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में परबतसर पहाड़ियों के अतिरिक्त कहीं भी पहाड़ियाँ नहीं पायी जाती हैं। मावों में कुछ छोटी पहाड़िया है जो अजमेर तक विस्तृत है। इस क्षेत्र के पूर्वी भाग में कुछ नमकीन झील क्रमशः संभिर, डीडवाना, नाथां व कुचामन आदि हैं। प्रो.एच.एस. शर्मा के अनुसार इन झीलों को कुछ लेखकों ने 'टेथिस सागर' के अवशिष्ट भाग बतलाया है जो एक गलत तथ्य है क्योंकि समुद्री जल में मैग्नीशियम होता है जबकि इन झीलों के पानी में इस तत्व की कमी है। इनमें नमक उत्पत्ति का स्रोत गहराई में पाई जाने वाली माइकाशिष्ट नमकीन चट्टानें हैं, जिनसे 'केशाकर्षण पद्धति' से नमक सतह पर आता है जो तत्पश्चात् वाष्पीकरण से सोडियम क्लोराइड बनता है। इतना ही नहीं वरन् बाह्य स्रोत से छोटी-छोटी मौसमी नदियाँ अपवाह क्षेत्र में से वर्षा काल में पानी के साथ नमक के कण एकत्र करके ले जाती हैं। परिणामतः नमक को मात्रा इन आन्तरिक प्रवाह की झोलों में उत्पन्न हो जाती है तथा झौलों में निरन्तर नमक को मात्रा बढ़ती रहती है। इस प्रकार पूर्व में जो स्वच्छ पानी की ये झोले (सांभर झौल) भी अब नमकीन झोलें हो गई है। इसलिए पश्चिम राजस्थान में खारे पानी की झीलें पाई जाती हैं।

(द) घरघर का मैदान (Ghagghar Field) : इस मैदान का निर्माण घग्घर, सतलज, वैदिक सरस्वती, चौतांग नदियों द्वारा लाई गई जोड़ मिट्टी द्वारा हुआ है। घरघर (नाली) का मैदान हनुमानगढ़, गंगानगर जिलों के लगभग 75% भाग में विस्तृत है। ये सभी नदियाँ हिमालय से निकलकर इस प्रदेश से होकरहित होती थी। कालान्तर में नम एवं आई जलवायु के परिवर्तनों के फलस्वरूप यह भाग शुष्क जलवायु में परिवर्तित हो गया। परिणामतः नदियाँ प्रायः लुप्त होतो चली गयी। घग्घर एक इसी प्रकार की 'मृत नदी' (Dead River) कहा जाता है क्योंकि इसका अपवाह तल स्पष्ट है। सरस्वती, सतलज व यमुना नदी के मार्ग में परिवर्तन तथा ईसा से पूर्व 2200 से 1900 के बीच बढ़ी भयंकर गर्मी के कारण सरस्वती नदी सूखकर लुप्त हो गई। उसका अवशेष घग्घर नदी है किन्तु वर्षाकाल में बाढ़ का पानी हनुमानगढ जिले को जलमग्न कर देता है। इस नदी के पाट (तल) को हनुमानगढ़ के पास 'नाली' कहा जाता है। जिसका विस्तार हनुमानगढ़, सूरतगढ़, अनूपगढ़ होते हुए पाकिस्तान तक है। इसी की एक शाखा दृशद्वती की शुष्क घाटी नोहर-भादरा में स्थित है। इस प्राचीन एवं वैभवशाली सरस्वती नदी का यह क्षेत्र अब पुनः गंगनहर एवं इन्दिरा गाँधी नहर के कारण हरियालीयुक्त कृषि क्षेत्र बन गया है। किन्तु क्षारीयता, अम्लता, सेम की समस्या, जल भराव की समस्या एवं मरुस्थलीयकरण की समस्या से क्षेत्र ग्रसित है जिससे पर्यावरणीय संकट खड़ा हो गया है जो विचारणीय है।
 

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